बुजुर्ग पिटाई केस: सिर्फ़ सरकार का विरोध करने वालों पर कार्रवाई क्यों?
जो घटना मोहम्मद अब्दुल समद सैफी के लिए आपदा रही, वही घटना हुकूमत के लिए अवसर बन गयी। हुकूमत का आरोप है कि एक पक्ष और है जो सैफी के साथ आपदा को ‘राजनीतिक अवसर’ में बदलने की कोशिश कर रहा था और अब बेनकाब हो चुका है। वास्तव में मोहम्मद अब्दुल समद सैफी के साथ हुई बर्बरता मूल घटना के केंद्र में रह ही नहीं गयी है।
केंद्र में वे लोग हैं जो हुकूमत विरोधी राय रखते हैं या जिनके साथ हुकूमत की बनती नहीं है। इनमें स्वतंत्र आवाज़ भी है, पत्रकार भी हैं, वेबसाइट्स भी हैं और राजनीतिक लोग भी।
मोहम्मद अब्दुल समद सैफी की पिटाई के वक्त उनसे सियाराम के नारे लगवाए गये- यह बात पुलिस ने झूठ करार दी। अब इसी ‘झूठ’ को प्रसारित करने वाले ‘गुनहगार’ खोज निकाल गए। इनमें पत्रकार, वेबसाइट तो हैं ही, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेता भी चिन्हित हुए। हुकूमत की ओर से कहा गया कि माहौल बिगाड़ने वाले बख्शे नहीं जाएंगे।
कौन बिगाड़ रहा है माहौल?
मोहम्मद अब्दुल समद सैफी की पिटाई वाला वीडियो ट्वीट और रीट्वीट करने वाले हजारों लोग हैं। मगर, कार्रवाई किन पर हुई? जुबैर अहमद, राणा अयूब, सलमान निजामी, मसकूर उस्मानी, डॉ. समा मोहम्मद, सबा नक़वी। क्या कोई गैर मुसलमान नहीं था जिसने इस वीडियो को ट्वीट या रीट्वीट किया? सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ कार्रवाई का यह उदाहरण क्या माहौल नहीं बिगाड़ेगा?
‘द वायर’ वेबसाइट के साथ-साथ राजनीतिक पार्टियां कांग्रेस और समाजवादी के नेता भी निशाने पर हैं। इन पर सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने के आरोप हैं। राहुल गांधी, स्वरा भास्कर जैसे नेताओं के खिलाफ भी केस दर्ज कराए गये हैं। जाहिर है इन घटनाओं पर होने वाली प्रतिक्रियाओं को भी अवसर बनाने और उसके सियासी इस्तेमाल की तैयारी कर ली गयी है।
सलेक्टिव एक्शन क्यों?
केवल ट्विटर पर कार्रवाई क्यों? क्या इसलिए कि ट्विटर को सबक सिखाने के मौके ढूंढ़ रही थी सरकार? अब्दुल समद सैफी के वीडियो को वायरल करने में ट्विटर के साथ-साथ यू-ट्यूब, फेसबुक और इंस्टाग्राम का भी योगदान है। इन सबको क्यों बख्श दिया गया? क्या इसलिए कि ट्विटर के साथ हुकूमत का सीधी तकरार चल रही है?
कार्रवाई सिर्फ ‘द वायर’ पर क्यों? देश की बाकी वेबसाइट्स और अखबारों ने क्या अब्दुल समद सैफी के वीडियो नहीं दिखाए? क्या ऐसी हेडलाइन नहीं बनाई जो इसलिए भ्रामक कही जा रही हैं कि पुलिस के मुताबिक तथ्य कुछ अलग हैं?
राजनीतिक नेताओं में उन पर कार्रवाई हो रही है जो अब्दुल समद सैफी के साथ हुई बर्बरता के खिलाफ बोल रहे हैं। मगर, उन बीजेपी, आरएसएस और उनके समर्थकों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई या हो रही है जिन्होंने इन्हीं वीडियो पर नफरत फैलाने वाली टिप्पणियां की?
पत्रकारिता और स्वतंत्र आवाज़ पर हमला
हुकूमत की कार्रवाई पत्रकारिता और स्वतंत्र आवाज़ पर सीधे तौर पर हमला है। यह कार्रवाई यह अपेक्षा रखती है कि कोई घटना घटने पर तब तक उसे कवर नहीं किया जाए जब तक कि पुलिस तहकीकात न कर ले। पुलिस जो थ्योरी दे वही सच है और उसे ही पत्रकार कवर करे।
पीड़ित अगर कुछ कह रहा है तो उसे तब तक सच नहीं माना जाए जब तक कि पुलिस उस पर हामी न भर दे। अगर पुलिस ने हामी नहीं भरी तो पीड़ित चाहे जो बोले वो सही नहीं हो सकता। पीड़ित की बात प्रचारित, प्रसारित या प्रकाशित करने को ‘भ्रम फैलाना’ करार दिया जा सकता है।
देश में ऐसे अनगिनत वाकये हुए हैं जिसमें मुख्य धारा की मीडिया, बीजेपी के नेता, बीजेपी की आईटी सेल ने सामूहिक रूप से झूठ फैलाया है। यह झूठ सांप्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने वाले भी रहे हैं। कभी इसके लिए न किसी ने माफी मांगी, न हुकूमत ने इन पर कोई इल्जाम लगाया। क्यों? क्योंकि ऐसी मुहिम से हुकूमत से जुड़ी सियासी पार्टी का हित पूरा हो रहा था। ऐसी घटनाओं की याद दिलाना भी जरूरी है-
जब पुलिस ने गलतियां सुधारी, एक्शन नहीं लिया
- जी-न्यूज़ ने ट्वीट किया था- फिरोजाबाद में कोरोना पॉजिटिव तब्लीगी जमात के 4 लोगों ने मेडिकल टीम पर पथराव किया। फिरोजाबाद पुलिस ने उस ट्वीट के जवाब में लिखा कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई। पुलिस ने 6 अप्रैल को ट्वीट डिलीट कराए जाने की पुष्टि का ट्वीट भी किया।
ट्विट को डिलीट कराया जा चुका है ।
— Firozabad Police (@firozabadpolice) April 6, 2020
अप्रैल के पहले हफ्ते में ही एएनआई ने एक खबर ट्वीट की जिसे एएनआई की एडिटर स्मिता प्रकाश ने रीट्वीट किया- “नोएडा के सेक्टर-5 में जो लोग तब्लीगी जमात के संपर्क में आए थे, उन्हें क्वारंटीन कर दिया गया है।” 8 अप्रैल 2020 को नोएडा पुलिस ने इस खबर को गलत बताते हुए कहा कि इस मामले का तब्लीगी जमात से कोई संबंध नहीं है।
@ANINewsUP people who had come in contact with the positive case were quarantined as per laid procedure.
— DCP_Noida (@DCP_Noida) April 7, 2020
There was no mention of Tabligh Jamat. You are misquoting and spreading fake news@noidapolice @Uppolicehttps://t.co/HwIM5Cr7K3
Correction- Those in Sector 5 Harola, Noida, who came in contact with #COVID19 positive case* have been quarantined: Sankalp Sharma, Gautam Budh Nagar (DCP) pic.twitter.com/R5m5NLEoze
— ANI UP (@ANINewsUP) April 8, 2020
प्रयागराज में हत्या की एक खबर को दीपक चौरसिया ने तब्लीगी जमात से जोड़ा था जिसे प्रयागराज पुलिस ने 5 अप्रैल को ट्वीट कर गलत बताया।
थाना करैली में FIR 127/2020 पंजीकृत कर नामजद वअन्य कुल 8 लोगों को हिरासत में लिया गया है। मृतक औरअभियुक्त पक्ष पास-पड़ोस के रहने वाले हैं,इनमें से किसी का भी सम्बन्ध तबलीगी जमात से होने की बात प्रकाश में नहीं आयी है। विवेचना के आधार पर कठोर विधिक कार्यवाही सुनिश्चित की जा रही है। https://t.co/BNpJ9nUqcV
— PRAYAGRAJ POLICE (@prayagraj_pol) April 5, 2020
जब अरुणाचल प्रदेश में कोरोना संक्रमण का पहला मामला आया ही था तब जी न्यूज़ ने वहां जमात के 11 सदस्यों के मिलने और उनके कोरोना संक्रमित होने की खबर चलायी थी। उसके स्क्रीन शॉट के साथ अरुणाचल प्रदेश के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग ने 9 अप्रैल 2020 को ट्वीट करते हुए खबर को गलत करार दिया था।
This is to clarify that Arunachal Pradesh has got only 1 COVID-19 positive case till date.
— ARUNACHAL IPR (@ArunachalDIPR) April 9, 2020
The reporting by Zeenews is false and does not carry any authenticity. pic.twitter.com/d74hBGDWbd
नफरत फैलाने वाले हैशटैग की ट्विटर पर बाढ़ आ गयी, लेकिन हुकूमत ने कभी इन्हें रोकने या ऐसे लोगों पर कोई कार्रवाई करने की जरूरत नहीं समझी। #आतंकी_तब्लीगी_जमात, #मसजिदों_में_सरकारी_ताले_लगाओ, #IslamicCoronaJehad, #मुसलिम_मतलब_आतंकवादी, #मुल्लों_को_भगाना_है_हिन्दूराष्ट्र_बनाना_है
ये उदाहरण सिर्फ एक वाकये से जुड़े हैं। एक पूरी आईटी सेल धार्मिक आधार पर नफरत परोसने में जुटी हुई है। वाट्सएप, ट्विटर, मैसेज, फेसबुक, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम जैसे तमाम सोशल प्लेटफॉर्म पर ये सक्रिय हैं। क्या इन पर कार्रवाई की आवश्यकता नहीं महसूस होती है? ऐसा क्यों?
यूपी में होने हैं चुनाव
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसलिए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के नेता निशाने पर हैं। जब पश्चिम बंगाल में चुनाव हो रहे थे तब हमला तृणमूल कांग्रेस झेल रही थी। राजनीतिक मकसद से हर छोटी-बड़ी घटनाओं में लाभ के लिए विभाजनकारी एंगल तलाश करने की कोशिश और इस कोशिश में सत्ता की ताकत का इस्तेमाल निरंकुश तरीके से जारी है।
बुजुर्ग की लिखित शिकायत भी झूठी!
मोहम्मद अब्दुल समद सैफी के साथ 5 जून को घटना घटी। उन्होंने थाने में लिखित शिकायत दी। शिकायत की रिसिविंग यूपी पुलिस ने आदत के हिसाब से नहीं दी। उस शिकायत में ही यह दर्ज है कि पिटाई करते वक्त सियाराम के नारे लगवाए गये, पेशाब पीने को कहा गया। अगर इन शिकायतों पर तभी कार्रवाई हो गयी होती तो क्या किसी को ट्वीट करने की जरूरत पड़ती?
पीड़ित के पक्ष में खड़ा होना अन्याय नहीं हो सकता। पीड़ित के लिए बोलने वालों पर मुकदमा अन्याय है। कोई भी पत्रकारिता पीड़ित के खिलाफ नहीं हो सकती और न ही पुलिस के वक्तव्य या जांच की मोहताज हो सकती है। पुलिस जांच पर यकीन करने का दबाव मीडिया और स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर क्यों बनाया जा रहा है?