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एमपी-राजस्थान में 'आप' को एक फ़ीसद वोट भी नहीं

एमपी-राजस्थान में 'आप' को एक फ़ीसद वोट भी नहीं

आम आदमी पार्टी ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में अपने उम्मीदवार उतार तो दिए, पर उसे 1% वोट भी नहीं मिले। अकेले उतरने की रणनीति चारों खाने चित् होने की वजह क्या है?

आम आदमी पार्टी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 1% वोट पाने में भी असफल रही।  बड़बोलापन दिखाते हुए उसने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो संभावित मुख्यमंत्री तक घोषित कर रखे थे, जिनकी ज़़मानतें ज़ब्त हो गईं।

हरियाणा का लाल

‘आप’ का पूरा ध्यान, विचारक्रम, सामर्थ्य और चंदा सिर्फ हरियाणा में केजरीवाल को हरियाणा का लाल सिद्ध करने में लग रहा है। इसके लिए पार्टी ने बचीखुची सार्वजनिक शुचिता को भी ‘बनिया’ घोषित कर दिया है! जिस अश्लील ढंग से उन्होंने जातिसूचक संज्ञाओं को आजकल दिल्ली में उछाला है, उससे वे सब आइना देखने से बच रहे हैं, जिन्हें इस प्रयोग से अस्वाभाविक उम्मीदें थीं!कल बीजेपी के ख़ि़लाफ़ विपक्षी दलों के जमावड़े में शिरकत कर केजरीवाल ने ख़ुद को प्रासंगिक समझने की कोशिश की है। पर ऐसा करके उन्होंने उस धारणा का खंडन कर दिया है जो उन्हें ‘अलग ढंग की पार्टी’ का नेता समझती, जिसे लोग वर्तमान के जातिवादी, संप्रदायवादी और थैली केंद्रित राजनीति का विकल्प समझ सकते! दिल्ली में अस्पताल, स्कूल, राशन, पानी, बिजली आदि मामलों में उनके सुधारवादी ‘आउट ऑफ बॉक्स’ कार्यक्रमों की ज़बरदस्त ख्याति है, जिसके चलते दिल्ली राज्य में वे मुख्यमंत्री के रूप में विकल्पहीन बने हुए हैं।

अरविंद केजरीवाल ने अपने दल को कार्यक्रम, विचार और अनवरतता से वंचित रखकर नितांत व्यक्तिवादी ढाँचे में बदल डाला है, जिसकी उम्र किसी क्षेत्रीय पार्टी की तरह ही सीमित हो उठी है। यह किसी भी देशव्यापी झंझावात के दौर में राजनैतिक तौर पर बेमतलब सिद्ध हो जाएगी।

गोवा के बाद इन तीन राज्यों में उनके दल का चुनावों में जो हाल हुआ है, उससे सीधा सबक़ सामने है। यह और बात है कि वे किसी सबक़ को पढ़ने की ज़रूरत बहुत पहले ही त्याग चुके हैं।

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