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शिवाजी से मोदी की तुलना: कांग्रेस का प्रदर्शन, ख़त्म नहीं हुआ विवाद?

शिवाजी से मोदी की तुलना: कांग्रेस का प्रदर्शन, ख़त्म नहीं हुआ विवाद?

'आज के शिवाजी- नरेंद्र मोदी' किताब को लेकर बीजेपी ने भले ही अपना पल्ला झाड़ लिया हो लेकिन महाराष्ट्र में इस किताब को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है।

'आज के शिवाजी- नरेंद्र मोदी' किताब को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने भले ही अपना पल्ला झाड़ लिया हो लेकिन महाराष्ट्र में इस किताब को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। कांग्रेस ने इस संबंध में आज राज्यव्यापी प्रदर्शन किया। वहीं शिवसेना और छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशजों, जो फ़िलहाल में बीजेपी में हैं, के बीच ट्विटर वार शुरू हो गया है।

इस विवाद की शुरुआत शिवसेना नेता और सांसद संजय राउत के ट्वीट के बाद हुई। इस ट्वीट में उन्होंने शिवाजी महाराज के सातारा की गद्दी के वंशज पूर्व सांसद उदयनराजे भोसले, विधायक शिवेंद्रराजे भोसले तथा कोल्हापुर गद्दी के वंशज संभाजीराजे से 'आज के शिवाजी- नरेंद्र मोदी' पर सवाल पूछा है कि 'क्या उन्हें यह मान्य है' यही नहीं, संजय राउत ने बीजेपी नेताओं और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से भी सवाल किया कि छोटी-छोटी बातों पर बयान देने वाले वे इस मुद्दे पर मीडिया के सामने आकर कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं। वैसे, छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और सातारा के पूर्व सांसद उदयनराजे भोसले ने इस मामले में बीजेपी और शिवसेना दोनों पर हमला किया।

नरेंद्र मोदी की तुलना, छत्रपति शिवाजी महाराज से करने को भोसले ने दिमाग़ी दिवालियापन बताया। यही नहीं, उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब  'शिवसेना' की स्थापना की गयी थी उस समय क्या महाराज के वंशजों से पूछा गया था उदयनराजे ने कहा कि अपनी सुविधा के अनुसार शिवाजी महाराज का नाम इस्तेमाल करना और बयानबाज़ी करना उचित नहीं है। हालाँकि इस बीच संजय राउत ने यह भी कहा कि चूँकि किताब को बीजेपी ने हटा लिया है और इसके लिए माफ़ी माँगी है इसलिए इस विवाद को ख़त्म कर दिया जाए।

दरअसल, छत्रपति शिवाजी महाराज को लेकर हुआ यह विवाद सिर्फ़ राजनीतिक नहीं है। इस मुद्दे पर विविध सामाजिक संगठनों ने भी अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है और यही कारण है कि बीजेपी ने विवाद बढ़ता देख अपना हाथ खींचने की कोशिश की। इस मामले में किताब के प्रकाशक और लेखक के ख़िलाफ़ पुलिस में मामला भी दर्ज हो चुका है। 

यह पहली बार नहीं है कि शिवाजी महाराज के नाम को लेकर महाराष्ट्र में कोई बड़ा विवाद खड़ा हुआ है। पहले भी कई बार उनके नाम को लेकर महाराष्ट्र में तनाव बढ़ा और आरोप-प्रत्यारोप हुए। साल 2004 में पुणे के भांडारकर प्राच्य विद्या रिसर्च संस्थान पर विदेशी लेखक जेम्स लेन की पुस्तक को लेकर शोर मचा था। जेम्स लेन की किताब  'Shivaji: Hindu King in Islamic India' में शिवाजी महाराज के बारे में कुछ तर्क दिए गए थे जो लोगों को पसंद नहीं आए और इस संस्थान के पुस्तकालय पर ही हल्ला बोल तोड़फोड़ की गयी। बाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने उक्त पुस्तक पर पाबंदी लगा दी थी। हाल ही में 'कौन बनेगा करोड़पति' में शिवाजी महाराज को लेकर पूछे गए एक सवाल में अमिताभ बच्चन द्वारा औरंगज़ेब के नाम के आगे सम्राट लगाने और शिवाजी महाराज के नाम के आगे छत्रपति नहीं लगाने पर भी विवाद खड़ा हो गया था। इस मामले पर अमिताभ बच्चन को ट्विटर पर आकर माफ़ी माँगनी पड़ी थी। 

शिवाजी महाराज को लेकर लिखी गयी या बोली गयी किसी अप्रिय बात पर इतना बवाल क्यों मचता है

अगर इसकी तह में देखें तो पायेंगे कि महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज को जो स्थान है वह किसी और को नहीं। वह महाराष्ट्र और मराठी अस्मिता के प्रतीक हैं। स्वतंत्रता के पहले हो या स्वतंत्रता के बाद महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज को हमेशा प्रेरणा स्रोत के रूप में देखा गया है। यही कारण है कि हिंदुत्ववादी विचारधारा के विरोधी वामपंथी लेखक गोविंद पानसरे ने भी शिवाजी महाराज पर 'शिवाजी कौन थे’ शीर्षक से किताब लिखी। बाद में इस किताब का अंग्रेज़ी अनुवाद भी हुआ। इस किताब में पानसरे ने शिवाजी महाराज को 'रयत का राजा' कहकर संबोधित किया है जिसका अर्थ एक ऐसे राजा से है जो अपनी जनता का बहुत ख्याल रखता था। 

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक सुहास पलसीकर के अनुसार 'शिवाजी महाराज, महाराष्ट्र की ऐतिहासिक विरासत के सर्वोच्च स्थान पर हैं। इसलिए उनके बारे में उनसे सम्बद्ध प्रतीकों का भी कोई ग़लत तरीक़े से इस्तेमाल करता है तो प्रतिक्रिया आती ही आती है। उन्होंने कहा कि 'मोदी जैसे सबसे अधिक वादग्रस्त राजनीतिक व्यक्ति से जब शिवाजी महाराज की तुलना की गयी तो असंतोष तो आना ही था। पलसीकर के अनुसार यह तुलना अनुचित और अतिशयोक्ति पूर्ण है। शिवाजी महाराज से नरेंद्र मोदी की तुलना को लेकर अब प्रदेश के अनेक संगठन भी विरोध जाता रहे हैं। इस विरोध को देख बीजेपी बैकफ़ुट पर है और वह कह रही है कि किताब से पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन बाक़ी पार्टियाँ इस मामले में बीजेपी से माफ़ी माँगने और किताब पर पाबंदी लगाने और उसे वापस लेने का दबाव बना रही हैं।

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