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दिल्ली दंगा: पुलिस पर पथराव करती दिखी भीड़, पर्याप्त संख्या में जवान होने का दावा ग़लत!

दिल्ली दंगा: पुलिस पर पथराव करती दिखी भीड़, पर्याप्त संख्या में जवान होने का दावा ग़लत!

क्या दिल्ली में दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के पास पर्याप्त संख्या में जवान नहीं थे। अगर जवान होते तो क्या प्रदर्शनकारियों की भीड़ पुलिस पर पत्थर बरसा पाती?

दिल्ली में हुए दंगों के दौरान पत्थरबाज़ी की कई घटनाएं हुईं। इनके वीडियो वायरल हुए और अब पत्थरबाज़ी की घटना का एक नया वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में दिख रहा है कि प्रदर्शनकारियों की भीड़ पुलिसकर्मियों पर पत्थर बरसा रही है। प्रदर्शनकारी बहुत ज़्यादा हैं और पुलिस के जवान बहुत कम। यहां पर दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के मुखिया रहे अमूल्य पटनायक के एक दावे पर सवाल खड़े होते हैं। 

दंगों के दौरान एक ख़बर फैली थी कि दिल्ली पुलिस ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को बताया है कि उसके पास पर्याप्त संख्या में जवान नहीं हैं। इस ख़बर के फैलते ही यह माना जाने लगा था कि इसी वजह से पुलिस दंगाइयों से नहीं निपट पा रही है। लेकिन तभी अमूल्य पटनायक सामने आये थे और उन्होंने कहा था कि इस तरह की ख़बरें पूरी तरह ग़लत हैं, गृह मंत्रालय की ओर से उन्हें पूरा सपोर्ट मिल रहा है और उनके पास पर्याप्त फ़ोर्स है। 

लेकिन इस नये वीडियो से अमूल्य पटनायक की बात ग़लत साबित होती है और सवाल खड़ा होता है कि क्या वास्तव में पुलिस के पास पर्याप्त संख्या में जवान नहीं थे। यह वीडियो दंग्राग्रस्त इलाक़े चांदबाग का बताया जा रहा है। वीडियो किसी ऊंची इमारत की छत से बनाया गया है। वीडियो में दिख रहा है कि पुलिस दो ओर से प्रदर्शनकारियों से घिरी है। जब वह एक ओर के प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिये आंसू गैस का इस्तेमाल करती है तो दूसरी ओर से प्रदर्शनकारियों की भीड़ उस पर पथराव शुरू कर देती है। 

वीडियो में साफ़ दिख रहा है कि इन प्रदर्शनकारियों में बुर्का पहनी हुईं महिलाएं भी शामिल हैं। तभी दूसरी ओर से वे प्रदर्शनकारी जिन्हें पुलिस ने खदेड़ दिया था, वे भी आ जाते हैं और पुलिस पर पथराव शुरू कर देते हैं। पुलिसकर्मी प्रदर्शनकारियों से बुरी तरह घिर जाते हैं लेकिन उन पर न सिर्फ़ पथराव जारी रहता है बल्कि लाठी-डंडों से भी हमला किया जाता है। 

पुलिसकर्मी अपनी जान बचाने के लिये डिवाइडर पर लगी लोहे की रेलिंग की दीवार को फांदकर दूसरी ओर कूद जाते हैं लेकिन अंत में एक पुलिसकर्मी प्रदर्शनकारियों के बीच में ही फंस जाता है और भीड़ उस पर टूट पड़ती है। जिस दिन का यह वीडियो है, उसी दिन दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल रतन लाल की मौत हुई थी। बताया जा रहा है कि दंगों के दौरान घायल हुए दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अमित शर्मा, रतन लाल और अनुज कुमार भी उस दिन इसी इलाक़े में तैनात थे। 

सूत्रों के मुताबिक़, ये पुलिसकर्मी चांदबाग में नागरिकता क़ानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों से बात करने गये थे। लेकिन तभी हालात बिगड़ गये और वे लोग प्रदर्शनकारियों की भीड़ से घिर गये। 

एनडीटीवी के मुताबिक़, एक दूसरे वीडियो में दिख रहा है कि जब प्रदर्शनकारी पुलिसकर्मियों पर पत्थर फेंकते हैं तो कुछ पुलिसकर्मी पुलिस अफ़सर अमित शर्मा को बचाते हुए वहां से ले जाते हैं। पुलिसकर्मी अनुज शर्मा सुरक्षा के लिये अमित को एक घर में ले जाते हैं। 

दिल्ली में दंगों के दौरान पुलिस पर यह आरोप लगे थे कि उसने त्वरित और सख़्त कार्रवाई नहीं की। लेकिन यहां इस वीडियो से साफ होता है कि पुलिस के पास दंगाइयों से निपटने के लिये पर्याप्त संख्या में जवान नहीं थे और प्रदर्शनकारियों की भीड़ के मुक़ाबले पुलिसकर्मियों की संख्या बेहद कम थी। अगर पुलिस के पास पर्याप्त संख्या में जवान होते तभी वह इतनी बड़ी संख्या में उस पर पत्थर फेंक रही भीड़ को क़ाबू में कर सकती थी। इसलिये अमूल्य पटनायक का दावा ग़लत साबित होता लगता है और निश्चित रूप से राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था में यह एक बहुत बड़ी चूक है। 

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