SC ने कराया था बिलकिस के दोषियों को सरेंडर; 2 हफ्ते में ही एक पैरोल पर बाहर
बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषियों में से एक फिर से पैरोल पर बाहर आ गया। इन सभी को सुप्रीम कोर्ट ने 21 जनवरी को गोधरा उप-जेल में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया था। आत्मसमर्पण के दो हफ्ते में ही दोषियों में से एक प्रदीप मोधिया को उसके ससुर की मृत्यु के बाद गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा पांच दिन की पैरोल दी गई है। पैरोल मिलने के बाद वह बुधवार को दाहोद जिले के अपने पैतृक गांव रंधिकपुर पहुँचा।
एक रिपोर्ट के अनुसार न्यायमूर्ति एम आर मेंगडे की अदालत ने 5 फरवरी को मोधिया को 7 से 11 फरवरी तक पैरोल की अनुमति दी थी। 31 जनवरी को दायर अपनी याचिका में मोधिया ने अपने ससुर की मृत्यु के कारण 30 दिन की पैरोल की मांग की थी। अभियोजन पक्ष ने उच्च न्यायालय को बताया था कि जेल रिकॉर्ड के अनुसार, जब मोधिया को आखिरी बार पैरोल पर रिहा किया गया था तो उसने 'समय पर रिपोर्ट की थी' और जेल में उसका आचरण भी 'अच्छा बताया गया था'।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार गुरुवार को मोधिया को स्थानीय निवासियों ने रंधिकपुर बाजार में काम करते देखा। एक ग्रामीण ने कहा, 'उनके ससुर का जनवरी के आखिरी सप्ताह में रंधिकपुर से लगभग 32 किमी दूर लिमडी में निधन हो गया... वह बुधवार देर रात गांव आए थे और गुरुवार को बाहर निकले।' अख़बार से दाहोद के लिमखेड़ा की पुलिस उपाधीक्षक विशाखा जैन ने कहा, 'हाईकोर्ट ने दोषी को पैरोल दे दी है और वह पांच दिनों के लिए अपने गांव लौट आया है। उसकी पैरोल शर्तों के अनुसार, उसे रंधिकपुर पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करने की आवश्यकता नहीं है... पैरोल अवधि के दौरान जिला पुलिस की कोई भूमिका नहीं है। उम्मीद है कि वह खुद ही जेल लौट आएगा।'
इससे पहले जब सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को जेल में आत्मसमर्पण के लिए कहा था तो उन्होंने आत्मसमर्पण के लिए समय सीमा बढ़ाने की गुहार लगाई थी। तब न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा था कि पारिवारिक शादियों और आश्रित माता-पिता के शामिल होने से लेकर फसल के मौसम तक के होने के कारणों का हवाला देने वाली याचिकाओं में दम नहीं है।
गुजरात सरकार द्वारा 11 दोषियों को दी गई छूट को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 8 जनवरी को उन्हें दो सप्ताह के भीतर जेल अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करने को कहा था। बाद में तीन दोषियों ने अलग-अलग व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए आत्मसमर्पण के लिए अधिक समय की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने 2022 में स्वतंत्रता दिवस पर एक अप्रचलित कानून के आधार पर रिहा कर दिया था।
जेल से छूटने के बाद दोषियों का नायक की तरह स्वागत किया गया और उन्हें भाजपा सांसद और विधायक के साथ मंच साझा करते देखा गया। इसके बाद इस पर और ज़्यादा विवाद बढ़ गया था।
बिलकिस बानो और नागरिक समाज एक्टिविस्टों ने उनकी रिहाई के खिलाफ अपीलें दायर की थीं और इस महीने सुप्रीम कोर्ट ने इन पर सुनवाई की। नाराज शीर्ष अदालत ने दोषियों की रिहाई रद्द कर दी। अदालत ने अपने मई 2022 के आदेश को रद्द कर दिया, जिसने 11 लोगों को शीघ्र रिहाई के लिए गुजरात सरकार से अपील करने की अनुमति दी थी।
अदालत ने कहा कि आदेश कपटपूर्ण तरीकों और तथ्यों को छुपा कर प्राप्त किया गया था और रिहाई की समीक्षा के लिए याचिका दायर नहीं करने के लिए राज्य सरकार को फटकार लगाई। इसमें यह भी कहा गया कि राज्य को यह ध्यान रखना चाहिए था कि इन लोगों को केवल महाराष्ट्र द्वारा ही रिहा किया जा सकता है, जहां उन पर मुकदमा चलाया गया था।
गुजरात सरकार ने एक 'पैनल' से परामर्श करने के बाद दोषियों को रिहा कर दिया था। पैनल में सत्तारूढ़ भाजपा से जुड़े लोग भी शामिल थे। पैनल ने बलात्कारियों और हत्यारों को 'संस्कारी ब्राह्मण' घोषित किया और 1992 की छूट नीति का हवाला देते हुए उनकी रिहाई की सिफारिश की थी।
बता दें कि बिलकीस बानो के साथ 3 मार्च, 2002 को भीड़ द्वारा सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। उनके परिवार के सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। यह घटना दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में हुई थी। उस समय बिलकीस बानो गर्भवती थीं। बिलकीस की उम्र उस समय 21 साल थी। इस मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था।