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शहरी सीवर, सेप्टिक टैंक साफ़ करने वाले 92% कर्मी एससी, एसटी, ओबीसी

शहरी सीवर, सेप्टिक टैंक साफ़ करने वाले 92% कर्मी एससी, एसटी, ओबीसी

सीवर और सैप्टिक टैंकों की सफ़ाई के दौरान सफ़ाई कर्मियों की मौत के मामले लगातार आते रहे हैं। आख़िर इतना ख़तरनाक काम करने वाले लोग कौन हैं? जानिए, आँकड़े क्या कहते हैं।

ऊपर की तस्वीर देखिए। देखने भर से ही सिहरन पैदा हो गई न! सफ़ाई कर्मी गंदगी में डूब जाते हैं। नीचे उतरते ही साँसें अटक जाती हैं। और कई बार तो जान ही चली जाती है। सीवर लाइन की सफ़ाई करते हुए सफ़ाई कर्मियों की मौत की ख़बरें लगातार आती रही हैं। ऐसी मौतों की गिनती तक के लिए अभी तक कोई ठोस काम नहीं हुआ है। हालाँकि, जब तब कुछ आँकड़े ज़रूर बताए जाते हैं। इसका कारण ढूंढने या बचाव के उपाय के लिए नीति बनाने की तो बात ही दूर है। तो सवाल है कि इतना ख़तरनाक काम आख़िर करता कौन है? आख़िर ये लोग कौन हैं?

इस सवाल को अब ढूंढने की कोशिश की गई है। भारत के शहरों और कस्बों में सीवरों और सेप्टिक टैंकों की ख़तरनाक सफ़ाई में लगे लोगों की गणना करने के अपने तरह के पहले प्रयास में, 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 3,000 से अधिक शहरी स्थानीय निकायों से जुटाए गए सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि अब तक प्रोफाइल किए गए 38,000 श्रमिकों में से 91.9% अनुसूचित जाति यानी एससी, अनुसूचित जनजाति यानी एसटी या अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी समुदायों से हैं। द हिंदू ने यह रिपोर्ट दी है। यदि इनको भी अलग-अलग करके देखा जाए तो श्रमिकों में से 68.9% अनुसूचित जाति, 14.7% अन्य पिछड़ा वर्ग, 8.3% अनुसूचित जनजाति तथा 8% सामान्य वर्ग से थे।

सेप्टिक टैंक, नाली और मल-जल की सफ़ाई कराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन जारी है। ऐसा इसलिए कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में मल जल, सीवेज, सेप्टिक टैंक या नाले की सफ़ाई हाथ से करने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। इसलिए इस काम में मज़दूरों को लगाना ग़ैर-क़ानूनी है। पर इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्ज़ियां उड़ाई जाती रही हैं। सफ़ाई कर्मचाारी आंदोलन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में इससे जुड़े आयोग से कहा था कि वह पता लगाए कि इस तरह की कितनी मौतें हुई हैं। तब आयोग ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र प्रशासित क्षेत्रों से रिपोर्ट देने को कहा। सिर्फ़ 13 यानी आधे से भी कम राज्यों ने ही रिपोर्ट दी।

हालाँकि, सरकारी की ओर से अख़बारों की कटिंग और इधर-उधर की सूचनाओं के आधार पर जनवरी, 2017 से लेकर 2018 के आख़िरी के महीनों तक सीवर लाइन में मरने वालों की संख्या 123 बताई गई थी। यह रिपोर्ट नेशनल कमीशन फॉर सफ़ाई कर्मचारी ने तैयार की थी। लेकिन दिक्कत यह है कि इस संख्या का आधार ठोस नहीं है। 29 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों में से सिर्फ़ 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने आँकड़े भेजे थे। तब मैग्सेसे अवार्ड जीतने वाले बेज़वादा विल्सन की संस्था सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन ने सरकार के आँकड़ों को ग़लत बताया था और इसकी संख्या 300 बताई। संस्था ने यह दावा सफ़ाई कर्मचारियों की मौत के आँकड़ों और उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर किया था। 

हालाँकि बाद में संसद में पेश सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2019 और 2023 के बीच देश भर में कम से कम 377 लोगों की मौत सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई से हुई है।

सीवर और सेप्टिक टैंक कर्मचारियों की प्रोफाइलिंग सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा अपने नमस्ते कार्यक्रम के तहत की जा रही है। यह सीवर के सभी कामों को मशीनीकृत करने और खतरनाक सफाई कार्य के कारण होने वाली मौतों को रोकने की एक योजना है।

2023-24 में इस योजना को मैनुअल स्कैवेंजर्स के पुनर्वास के लिए स्व-रोजगार योजना की जगह लाया गया था।

केंद्र सरकार का तर्क है कि देश भर में मैनुअल स्कैवेंजिंग एक प्रथा के रूप में समाप्त हो गई है और अब जिस चीज को ठीक करने की जरूरत है, वह है सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार मंत्रालय का कहना है कि नमस्ते कार्यक्रम का लक्ष्य “सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई से सीधे जुड़े कर्मचारी हैं, जिनमें डीस्लजिंग वाहनों के ड्राइवर, हेल्पर, मशीन ऑपरेटर और क्लीनर शामिल हैं'। इसका लक्ष्य राष्ट्रव्यापी गणना अभ्यास में ऐसे कर्मचारियों की पहचान करना, उन्हें सुरक्षा प्रशिक्षण और उपकरण देना और पूंजीगत सब्सिडी देना है, जिससे सीवर और सेप्टिक टैंक के कर्मचारी स्वच्छता उद्यमी बन सकें।

रिपोर्ट के अनुसार आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय का अनुमान है कि पाँच लाख की शहरी आबादी के लिए 100 कोर सफाई कर्मचारी हैं।

केरल, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर सहित बारह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने प्रोफाइलिंग प्रक्रिया पूरी कर ली है, जबकि आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सहित 17 राज्यों में यह प्रक्रिया अभी भी जारी है। छत्तीसगढ़, मेघालय और पश्चिम बंगाल उन राज्यों में शामिल हैं, जिन्होंने अभी तक प्रोफाइलिंग प्रक्रिया शुरू नहीं की है। तमिलनाडु और ओडिशा एसएसडब्ल्यू के लिए अपने खुद के कार्यक्रम चला रहे हैं, और इस कार्यक्रम के तहत केंद्र को डेटा रिपोर्ट नहीं कर रहे हैं।

पिछली एसआरएमएस योजना के तहत सरकार ने 2018 तक 58,098 हाथ से मैला ढोने वालों की पहचान की थी। तब से इसने जोर देकर कहा है कि किसी अन्य हाथ से मैला ढोने वाले की पहचान नहीं की गई है। इसने दावा किया है कि हाथ से मैला ढोने की 6,500 से अधिक शिकायतों में से किसी की भी पुष्टि नहीं की जा सकी।

पहचाने गए हाथ से मैला ढोने वालों में से सरकार ने कहा है कि उसके पास 43,797 की सामाजिक श्रेणियों का डेटा है, जो दिखाता है कि उनमें से 97.2% एससी समुदायों से थे। एसटी, ओबीसी और अन्य की हिस्सेदारी लगभग 1% थी।

मंत्रालय के रिकॉर्ड से पता चला है कि 2018 तक हाथ से मैला ढोने वालों के रूप में पहचाने गए सभी 58,098 लोगों को 40,000 रुपये का एकमुश्त नकद हस्तांतरण दिया गया था। जबकि उनमें से 18,880 ने वैकल्पिक व्यवसायों में कौशल प्रशिक्षण का विकल्प चुना था।

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