वैक्सीन की दोनों खुराक के बाद भी 87 हज़ार लोग कोरोना संक्रमित
कोरोना के ख़िलाफ़ जिस वैक्सीन को 'राम-बाण' इलाज माना जा रहा था वह वैक्सीन दरअसल कमजोर पड़ती दिख रही है। देश में ऐसे 87 हज़ार कोरोना पॉजिटिव मामले आए हैं जिन्हें कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराक लगाई गई थी। आज ही एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चेन्नई में किए गए इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर के एक अध्ययन में पाया गया है कि डेल्टा वैरिएंट में दोनों खुराक लगवाए लोगों को भी संक्रमित करने की क्षमता है। हालाँकि इसमें कहा गया है कि टीका लगाए लोगों में मृत्यु दर कम होती है। इंग्लैंड के एक शोध में भी कहा गया है कि वैक्सीन की दोनों खुराक लगवाए लोगों को डेल्टा वैरिएंट संक्रमित कर रहा है।
देश भर से आए ऐसे 87 हज़ार मामलों में से क़रीब 46 फ़ीसदी मामले केरल में आए हैं। एनडीटीवी ने स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि केरल में क़रीब 40 हज़ार पॉजिटिव संक्रमण के मामले ऐसे हैं जिन्होंने टीके की दोनों ख़ुराक ली थी। 80 हज़ार संक्रमण के मामले ऐसे हैं जिन्होंने पहली खुराक ली थी।
वैक्सीन लगाए हुए लोगों के भी संक्रमित होने की वजह से राज्य में संक्रमण के ज़्यादा मामले आ रहे हैं। राज्य में 21 हज़ार से ज़्यादा संक्रमण के नये मामले आए हैं। ऐसे मामले आने के बाद अक्सर नये वैरिएंट के आने का संदेह होता है। लेकिन केरल के मामले में ऐसा अभी तक संकेत नहीं मिला है। रिपोर्ट के अनुसार क़रीब 200 सैंपलों की जीनोम सिक्वेंसिंग के बाद भी किसी म्यूटेशन या वैरिएंट का पता नहीं चला है।
वैसे, पूरे देश में इतनी बड़ी संख्या में टीके लगवाए लोगों का भी संक्रमित होना चिंता का विषय है। चिंता का एक और बड़ा कारण तो ताज़ा शोध में भी सामने आया है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और इंग्लैंड के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा किए गए सर्वे को गुरुवार को प्रकाशित किया गया है। संक्रमण पैटर्न की एक विस्तृत तस्वीर के लिए लोगों के रैंडम सैंपल के आधार पर 30 लाख से अधिक पीसीआर परीक्षणों का विश्लेषण किया गया है। ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि इस साल डेल्टा वैरिएंट काफ़ी तेज़ी से संक्रमण फैला रहा है।
बेहद तेज़ी से फैलने वाला और सबसे घातक म्यूटेशन डेल्टा वैरिएंट दोनों खुराक लगवाए लोगों को भी संक्रमित कर रहा है।
फाइजर और बायोएनटेक की आरएनए वैक्सीन की दोनों खुराक लगाने के बाद 90 दिनों में ही प्रभाव कम हो गया। शोध में यह भी सामने आया है कि जब टीका लगाए गए लोग डेल्टा से संक्रमित हो गए तो उनके शरीर में वायरस के समान स्तर थे, जितने कि उन लोगों में जिनको कोई टीका नहीं लगाया गया था।
इन परिणामों से उस आशंका को और बल मिलता है जिसमें कहा गया है कि हर्ड इम्युनिटी यानी झुंड प्रतिरक्षा आना मुश्किल लगता है।
हर्ड इम्युनिटी यानी झुंड प्रतिरक्षा का सीधा मतलब यह है कि कोरोना संक्रमण से लड़ने की क्षमता इतने लोगों में हो जाना कि फिर वायरस को फैलने का मौक़ा ही नहीं मिले। यह हर्ड इम्युनिटी या तो कोरोना से ठीक हुए लोगों या फिर वैक्सीन के बाद शरीर में बनी एंटीबॉडी से आती है। शुरुआत में कहा जा रहा था कि यदि किसी क्षेत्र में 70-80 फ़ीसदी लोगों में कोरोना से लड़ने वाली एंटीबॉडी बन जाएगी तो हर्ड इम्युनिटी की स्थिति आ जाएगी।
लेकिन अब कोरोना से ठीक हुए लोगों और वैक्सीन की दोनों खुराक लिए हुए लोगों में भी संक्रमण के मामले आने के बाद इस पर सवाल उठने लगे हैं।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के ताज़ा शोध के परिणाम से पूरी तरह से टीका लगाए लोगों को बूस्टर खुराक देने की मांग को बल मिलने की संभावना है। लेकिन एक बड़ी चिंता यह है कि वैक्सीन की आपूर्ति उतनी नहीं है कि पूरी आबादी को एक भी टीका लगाया जा सके। भारत में लक्ष्य रखा गया है कि इस साल के आख़िर तक पूरी व्यस्क आबादी को टीका लगा दिया जाएगा। जबकि हालात ऐसे हैं कि सरकार इस लक्ष्य से भी काफ़ी पीछे चल रही है। भारत में अब तक कुल 56 करोड़ टीके लगाए जा सके हैं। टीके की योग्य आबादी के क़रीब 9 फ़ीसदी लोगों को ही दोनों खुराक लगाई गई हैं।