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550 से अधिक सामाजिक संगठनों और लोगों ने कहा मणिपुर में हिंसा रोके सरकार 

550 से अधिक सामाजिक संगठनों और लोगों ने कहा मणिपुर में हिंसा रोके सरकार 

मणिपुर में जारी हिंसा की निंदा करने के लिए देश भर के 550 से अधिक सामाजिक संगठन एक साथ आएं 

मणिपुर में मई 2023 की शुरुआत से मेइती समुदाय और आदिवासी कुकी समुदाय के बीच चल रही हिंसा पर देश भर के 550 सामाजिक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा है कि सभी पक्ष तत्काल संघर्ष विराम करें। उन्होंने मणिपुर और केंद्र सरकार से मांग की है कि तुरंत हिंसा पर रोक लगाई जाए। 

देश भर के इन 550 सामाजिक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक साझा बयान जारी कर कहा है कि प्रधानमंत्री मणिपुर में चल रही हिंसा पर अपनी अपनी चुप्पी तोड़ें।

इन सामाजिक संगठनों की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है हिंसा के कारण  लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं या हिंसा से प्रभावित हुए हैं। हिंसा अभी भी जारी है।

उन्होंने आरोप लगाया है कि केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों द्वारा निभाई गई विभाजनकारी राजनीति के कारण आज मणिपुर का बहुत बड़ा हिस्सा जल रहा है। 

अब और अधिक लोगों की जान नहीं जाए इसके लिए हिंसा के सिलसिले को रोकने की जिम्मेदारी इन्हीं सरकारों की है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकार को मणिपुर में शांति व्यवस्था बहाल करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। हिंसा रोकने के लिए दोनों ही समुदायों के बीच संवाद बढ़ाने की कोशिश होनी चाहिए। 

उन्होंने कहा है कि हिंसा में शामिल लोगों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। मणिपुर के दोनों ही समुदायों के ज़ख्मों को भरने और उन्हें न्याय दिलाने के लिए काम होना चाहिए। ताकि विभाजन और नफरत को कम किया जा सके।

उन्होंने मांग की है कि इस दौरान हुई यौन हिंसा के सभी मामलों के लिए एक फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की जानी चाहिए। 

पलायन के लिए मजबूर लोगों को सरकार द्वारा राहत और सुरक्षा दी जाए। उनके गांवों में उनकी सुरक्षित वापसी की गारंटी राज्य सरकार ले। जिन लोगों के घरों को नुक्सान पहुंचा दिया गया है उनके घरों का पुनर्निर्माण हो। इस जातीय हिंसा में अपने परिजनों को खोने वाले, घायल होने वाले और जिनकी संपत्ति का नुक़सान हुआ है उन्हें मुआवजा दिया जाए। 

इन संगठनों ने की है शांति की अपील

जिन सामाजिक संगठनों ने मणिपुर में शांति व्यवस्था बहाल करने की अपील की है उसमें झारखंड जनाधिकार महासभा, सहेली वीमेंस रिसोर्स सेंटर, नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन, भारतीय ईसाई महिला आंदोलन, मानवाधिकार मंच, यौन हिंसा और राज्य दमन के खिलाफ महिला, महिलाओं के उत्पीड़न के खिलाफ मंच, अनहद, प्रतिरोध में नारीवादी, कर्नाटक जनशक्ति, लोकतांत्रिक अधिकार संगठन का समन्वय, पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स, राष्ट्रीय धर्मनिर्पेक्षता आन्दोलन सतारा महाराष्ट्र, बेबाक कलेक्टिव, भगत सिंह अम्बेडकर छात्र संगठन, अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा (एआईकेकेएस),बाल अधिकार केंद्र, विमोचना,  एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स पंजाब, स्वराज अभियान, धार्मिक न्याय गठबंधन - पश्चिम भारत, अखिल भारतीय क्विर एसोसिएशन, प्रगतिशील किसान मंच, समाजवादी जन परिषद, दिल्ली एनसीआर के कैथोलिक संघों का संघ, भारत न्याय परियोजना, अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ, नारी समता मंच आदि शामिल हैं। 

वहीं हिंसा रोकने की अपील करने वाले सिविल सोसायटी के प्रमुख लोगों में नारेन, गैब्रियल डीट्रिच, सुजातो भद्रा, वीना नरेगल, लता सिंह, अंगना चटर्जी , गौहर रजा, सुजाता पटेल, आदित्य निगम, आनंद पटवर्धन, जॉन दयाल, सिंथिया स्टीफन, पामेला फिलिपोस, राजश्री दासगुप्ता, रंजना पाधी, सुजाता मधोक, सोनल केलॉग, टीना गिल, शुद्धब्रत सेनगुप्ता,शालिनी गेरा, यूसुफ मुच्छला, सुमिता हजारिका, प्योली स्वातीजा, ईशा खंडेलवाल, शालू निगम, लारा जेसानी आदि शामिल हैं।

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