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जुबैर ने कोर्ट में कहा, बस मेरे नाम, पेशे और धर्म का फर्क है, जमानत नामंजूर   

जुबैर ने कोर्ट में कहा, बस मेरे नाम, पेशे और धर्म का फर्क है, जमानत नामंजूर   

दिल्ली की कोर्ट ने पत्रकार मोहम्मद जुबैर का 4 दिनों का पुलिस रिमांड मंजूर किया है। दिल्ली पुलिस ने 7 दिनों का रिमांड मांगा था। लेकिन इस दौरान जुबैर के वकील की दलीलें सुनने लायक हैं। कोर्ट ने भी सुना लेकिन उसने जमानत नहीं दी। 

ऑल्ट न्यूज के सह संस्थापक और पत्रकार मोहम्मद जुबैर की जमानत याचिका पर अदालत ने दिल्ली पुलिस को चार दिन का रिमांड दिया है। हालांकि दिल्ली पुलिस ने 7 दिनों का रिमांड मांगा था। इससे पहले दोनों पक्षों ने दलीलें पेश कीं।

मोहम्मद जुबैर की तरफ से एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने कोर्ट में कहा कि जुबैर का काम फैक्ट चेक करना है। क्योंकि इंटरनेट पर बहुत सारी गलत सूचना और फर्जी खबरें हैं। 2019 में दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्हें सुरक्षा प्रदान की थी. ऐसे में दिल्ली पुलिस की स्टेटस रिपोर्ट कहती है कि जांच में उनका ट्वीट आपत्तिजनक नहीं है। वह एफआईआर 194/2020 है।

लाइव लॉ के मुताबिक वृंदा ने कोर्ट में कहा कि जुबैर को सोमवार को आने का नोटिस उसी मामले में दिया गया था। वो जांच में शामिल हुए। शाम करीब पांच बजे पूछताछ शुरू हुई। सारी औपचारिकता पूरी कर नोटिस दिया गया, उस पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया। फिर गिरफ्तार कर लिया गया। यह जल्दबाजी समझ में नहीं आ रही है। ऐसा क्यों हुआ।

वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा: दिल्ली पुलिस ने 7 दिन की रिमांड मांगी थी। ड्यूटी मजिस्ट्रेट इच्छुक नहीं थे और उन्होंने एक दिन का पुलिस रिमांड दिया। एफआईआर में आईपीसी की धाराएं 153ए और 295 हैं। जिसमें अधिकतम सजा क्रमशः तीन वर्ष और दो वर्ष हैं। वे जिस ट्वीट का जिक्र कर रहे हैं, वह 2018 का है। यह तस्वीर 1983 में बनी एक फिल्म "किसी से ना कहना" की है। यह ऐसा कोई संपादन नहीं है जो आरोपी या किसी और ने किया हो।

जुबैर की वकील ने फिल्म का सीन कोर्ट को सुनाया। फिर उन्होंने बताया कि इस दृश्य में "हनीमून होटल" नाम के एक होटल को "हनुमान होटल" के रूप में अपना नाम बदलते हुए दिखाया गया है। किसी को गिरफ्तार करने, रिमांड मांगने की वजह के तौर पर दिखाई गई यह तस्वीर है जो हिंदी सिनेमा की है। ट्विटर पर इस वीडियो को लोगों ने शेयर किया है। सिर्फ जुबैर ने ही इसे शेयर नहीं किया है। यह एक पुरानी फिल्म है। कई ट्विटर हैंडल हैं जो इस बात की सराहना कर रहे हैं कि "हनीमून होटल" को "हनुमान होटल" बना दिया गया है।

सोशल मीडिया इसी तरह काम करता है। चाहे जो भी हो, यह एक स्वतंत्र देश है, लोग जो चाहें कह सकते हैं। मैंने कुछ नहीं किया है। लोग दरअसल एक राजनीतिक दल का नाम लेकर तालियां बजा रहे हैं। पूरा मामला ही बेतुका है। "हनुमान भक्त (शिकायत करने वाला गुमनाम ट्विटर हैंडल) कह रहा है कि हनुमान जी ब्रह्मचारी थे। यह 1983 की फिल्म थी। कई लोगों ने फिल्म की सराहना की है। विवाद कहां है? मेरे मुवक्किल को दुर्भावनापूर्ण ढंग से टारगेट किया जा रहा है।


-वृंदा ग्रोवर, मोहम्मद जुबैर की वकील मंगलवार को कोर्ट में (लाइव लॉ) के मुताबिक

वृंदा ग्रोवर ने कहा : पहला मानदंड जो उन्हें पूरा करना होगा वह है कि क्या जुबैर के उस ट्वीट से कोई नुकसान हुआ है। उसमें कोई पूजा स्थल या पवित्र वस्तु दिखाई गई। यह एक फिल्म की तस्वीर है। यह पूजा स्थल नहीं है। यह हनीमून मनाने वालों का मजाक है। नुकसान कहां है? प्रथम दृष्टया कहां है मामला? हां, जुबैर एक फैक्ट चेकर हैं। वो एक पत्रकार हैं। वो अपने मन की बात कहते हैं। इस एफआईआर में 295 का भी आरोप कैसे लगाया गया?  

वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा: उनकी जांच एक ट्वीट पर आधारित है। यदि विचार यह है कि इस आदमी को प्रताड़ित करना है, कानून का दुरुपयोग करना है, तो हाँ पुलिस ठीक यही कर रही है। तुम मुझे दूसरे केस के लिए बुलाओ, मुझे अलग केस में गिरफ्तार करो। मेरे मुवक्किल ने जो किया, पत्रकार होने के नाते उसकी प्रोफेशनल ड्यूटी है। उसे सिर्फ सच बोलने की वजह से टारगेट किया जा रहा है।

वृंदा ग्रोवर की दलीलों का अभियोजन पक्ष ने जवाब दिया। उन्होंने कहा कि ये आजकल का ट्रेड बन गया है कि मशहूर होने के लिए धार्मिक भावनाएं भड़काई जाएं। अपने ट्वीट से धार्मिक भावनाएं भड़काई जाती हैं। इन्होंने तो 4 ट्वीट महाभारत पर ही संपादित करके डाले हैं। इनके मोबाइल से सारी ऐप डिलीट थीं। ये खाली मोबाइल लेकर आए थे। इस पर वृंदा ग्रोवर ने कहा कि दोनों मामले अलग-अलग हैं। इस पर सरकारी वकील ने कहा कि अभी हमें इनका लैपटॉप और अन्य उपकरण बरामद करना है। इसलिए पुलिस को रिमांड मिलना चाहिए।

अदालत ने इसके बाद फैसला बीस मिनट बाद सुनाने को कहा। लेकिन उसने करीब डेढ़ घंटे बाद मोहम्मद जुबैर की जमानत अर्जी खारिज करते हुए दिल्ली पुलिस को उनकी चार दिनों की रिमांड दे दी।

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