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घाटे में चल रही 33 कंपनियों ने भी राजनैतिक दलों को 582 करोड़ के चुनावी बॉन्ड दान किए

घाटे में चल रही 33 कंपनियों ने भी राजनैतिक दलों को 582 करोड़ के चुनावी बॉन्ड दान किए

अंग्रेजी अखबार द हिंदू की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एक विश्लेषण से पता चलता है कि सत्तारूढ़ भाजपा को चुनावी बांड दान करने वाली कम से कम 45 कंपनियों के फंडिंग स्रोत संदिग्ध हैं।

अंग्रेजी अखबार द हिंदू की  रिपोर्ट कहती है कि घाटे में चल रही 33 कंपनियों ने भी 582 करोड़ के चुनावी बॉन्ड दान किए, इसमें 75 प्रतिशत भाजपा को मिले हैं। 

 रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एक विश्लेषण से पता चलता है कि सत्तारूढ़ भाजपा को चुनावी बांड दान करने वाली कम से कम 45 कंपनियों के फंडिंग स्रोत संदिग्ध हैं। 

द हिंदू अखबार की रिपोर्ट कहती है कि विभिन्न राजनीतिक दलों को चुनावी बांड दान करने वाली कम से कम 45 कंपनियों के धन के स्रोत को द हिंदू के संयुक्त विश्लेषण और एक स्वतंत्र शोध के आधार पर संदिग्ध पाया गया है। 

द हिंदू की रिपोर्ट में इन 45 कंपनियों को चार श्रेणियों (ए, बी, सी और डी) में बांटा गया है। जिनके बारे में बताया गया है कि कैसे वे घाटे में थी इसके बावजूद वह करोड़ो रुपये दान बांट रही थी। 

यह रिपोर्ट कहती है कि घाटे में रहने वाली कंपनियों के द्वारा बांटे गए दान को देखकर यह संदेह होता है कि ये कंपनियां मनी लॉन्ड्रिंग के काम में लिप्त हो। 

ए श्रेणी ,की तैंतीस कंपनियों ने इलेक्टोरल बॉन्ड में कुल 576.2 करोड़ का दान दिया, जिसमें से 434.2 करोड़ (लगभग 75 प्रतिशत) भाजपा द्वारा भुनाया गया। इन कंपनियों को 2016-17 से 2022-23 तक सात वर्षों में कर भुगतान के बाद नकारात्मक या लगभग शून्य लाभ हुआ था। 

इन 33 कंपनियों का कुल शुद्ध घाटा 1 लाख करोड़ से अधिक था। इन 33 कंपनियों (श्रेणी ए) में से 16 ने कुल मिलाकर शून्य या नकारात्मक प्रत्यक्ष कर का भुगतान किया था।

घाटे में चल रही इन कंपनियों ने इतना बड़ा दान दिया है कि जिससे यह संकेत मिलता है कि वे अन्य कंपनियों के लिए मुखौटे के रूप में काम कर सकती हैं या उन्होंने अपने लाभ और घाटे की गलत जानकारी दी थी। ऐसे में इन मामलों में मनी लॉन्ड्रिंग की संभावना बढ़ गई है। 

रिपोर्ट कहती है कि बी श्रेणी की, छह कंपनियों ने कुल 646 करोड़ का दान दिया, जिसमें से 601 करोड़ रुपये (93 प्रतिशत) भाजपा को मिले। 2016-17 से 2022-23 तक कुल मिलाकर उनका शुद्ध लाभ सकारात्मक था, लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से दान की गई राशि उनके कुल शुद्ध लाभ से काफी अधिक थी।

 ऐसे में इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ये कंपनियाँ अन्य कंपनियों के लिए मुखौटे के रूप में भी काम कर सकती थीं या उन्होंने अपने लाभ और हानि की गलत जानकारी दी होगी।

 सी श्रेणी की तीन कंपनियों ने कुल मिलाकर 193.8 करोड़ रुपये का दान दिया, जिसमें से 28.3 करोड़ रुपये (लगभग 15 प्रतिशत) भाजपा ने भुना लिया। बाकी राशि में से, कांग्रेस को 91.6 करोड़ रुपये(47 प्रतिशत), तृणमूल को 45.9 करोड़ रुपये मिले थे। बीआरएस 10 करोड़ और बीजेडी को भी करोड़, आप को 7 करोड़ रुपये मिले थे 

वहीं डी श्रेणी में आने वाली तीन कंपनियों ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये 16.4 करोड़ रुपये दान दिया। जिसमें से 4.9 करोड़ रुपये (लगभग 30 प्रतिशत) भाजपा ने भुनाया। वहीं कांग्रेस (58 प्रतिशत), और अकाली दल और जेडी (यू) ने भी करीब 6.1 प्रतिशत रुपये को प्राप्त किया। 

इन तीन कंपनियों के पास पूरे सात साल की अवधि के लिए शुद्ध लाभ या भुगतान किए गए प्रत्यक्ष करों पर कोई डेटा नहीं था, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या दानकर्ता शेल कंपनियां थीं जो मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल थीं।

द हिंदू की रिपोर्ट कहती है कि आरबीआई और वित्त मंत्रालय के बीच हुए पत्राचार या उनके बीच हुए कम्युनिकेशन में केंद्रीय बैंक यानी आरबीआई ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के संबंध में शुरुआत से ही संदेह जताया था। 

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