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किसान कर्ज़माफ़ी : मप्र में हड़कंप, 3000 करोड़ का घपला! 

किसान कर्ज़माफ़ी : मप्र में हड़कंप, 3000 करोड़ का घपला! 

मध्य प्रदेश में बड़ी संख्या में किसानों ने शिकायत की है कि उन्होंने कर्ज़ लिया ही नहीं, लेकिन उनके नाम कर्ज़़दारों की सूचियों में आ गए हैं। 

किसानों के दो लाख रुपये तक की कर्ज़माफ़ी को लेकर प्रदेश भर में चस्पा की गईं ऋणदाता किसानों की सूचियों के बाद हड़कंप मच गया है। राज्य के हर हिस्से से बड़ी संख्या में ऐसे किसान आगे आए हैं जिन्होंने शिकायत की है कि उन्होंने कर्ज़ लिया ही नहीं लेकिन उनके नाम कर्ज़दारों की सूचियों में आ गए हैं। 

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पहली नज़र में पूर्व की बीजेपी सरकार के कार्यकाल के दौरान सहकारी बैंकों में तीन हजार करोड़ के लगभग की गड़बड़ियाँ किए जाने की जानकारी सामने आई है। कमलनाथ सरकार ने कई जिलों में बैंक अमले के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज़ कराते हुए जाँच बैठा दी है।

उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, 2007 से 2018 के बीच बीजेपी की सरकार में सहकारी बैंकों द्वारा किसानों को कर्ज़ तथा खाद-बीज के लिए मुहैया कराई जाने वाली सहायता राशि में घपले और घोटाले किए गए हैं। पूरा गड़बड़झाला सहकारी सोसायटियों के कर्ता-धर्ताओं ने किया है। 

कर्ज़ देने वाले सहकारी बैंकों के अमले और सोसायटियों का ऑडिट करने वाले मध्य प्रदेश के सहकारिता विभाग के उस अमले की भूमिका भी बेहद संदिग्ध पायी जा रही है जो गड़बड़ियाँ रोकने के लिए तैनात है।

कर्ज़दार किसानों की सूचियाँ चस्पा 

कमलनाथ सरकार ने अपने वादे के अनुसार कर्ज़माफ़ी का आगाज़ किया है। कर्ज़दार किसानों की सूचियाँ पंचायत स्तर पर चस्पा की गई हैं। किसानों से तीन तरह के फ़ार्म भरवाए जा रहे हैं। कर्ज़माफ़ी से जुड़े किसानों को 5 फरवरी तक फ़ार्म भरने हैं। सरकार 22 फरवरी से किसानों के बैंक खातों में राशि स्थानांतरित करने वाली है। 

3 प्रकार के फ़ार्मों में एक फ़ार्म गुलाबी रंग का है। इस फ़ार्म में कर्ज़ को लेकर किसी तरह की शिकायत है तो किसानों से इसके बारे में बताने के लिए कहा गया है। राज्य में 24 जनवरी तक तक 43 हजार गुलाबी फ़ार्म भरे जा चुके हैं। 

गुलाबी फ़ार्म भरने वाले अधिकांश किसानों की शिकायत है, ‘उन्होंने कर्ज़ लिया ही नहीं है और उनका नाम कर्ज़दारों की सूचियों में डाल दिया गया है।’

50 लाख फ़ार्म भरे जाने हैं

कमलनाथ सरकार ने दो लाख रुपये तक के कर्ज़ माफ़ किए हैं। राज्य के लगभग 50 लाख किसान कर्ज़माफ़ी के हकदार के तौर पर सामने आए हैं। राज्य की सरकार 50 हजार करोड़ के कर्ज़़ माफ कर रही है। इन पर सहकारी और राष्ट्रीयकृत बैंकों के कर्ज़ बक़ाया पाए गए हैं। 

इसी माह के पहले सप्ताह में आरंभ की गई प्रक्रिया के बाद अब तक प्रदेश भर में 13 लाख के लगभग किसानों ने सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के तहत फ़ार्म भरे हैं। लेकिन अब सामने आ रही भारी गड़बड़ियों ने सरकार की नींद उड़ा दी है। 

कर्ज़ ना लेने के बावजूद किसानों का नाम सूचियों में आने की शिकायतें सामने आने के बाद कमलनाथ सरकार ने स्पष्ट किया है कि किसी भी दोषी को बख़्शा नहीं जाएगा।

कटनी, सागर व रीवा में एफ़आईआर

प्रदेश सरकार ने बीते शुक्रवार को मध्य प्रदेश के कटनी, सागर और रीवा समेत आधा दर्ज़न ज़िलों की सहकारी समितियों के कर्ता-धर्ताओं के ख़िलाफ़ पुलिस में मामले दर्ज़ कराए हैं। इस संबंध में कटनी, सागर व रीवा में एफ़आईआर दर्ज़ की गई हैं। अपने गृह जिले छिंदवाड़ा से भोपाल लौटने के बाद कमलनाथ ने कर्ज़ माफ़ी से जुड़ी तमाम गड़बड़ियों की फ़ाइल तलब की है। उन्होंने इस मामले की समीक्षा की है और अधिकारियों को इस संबंध में आवश्यक क़दम उठाने के निर्देश दिए हैं।

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दी गई राशि में किया घपला

सूत्रों ने बताया है कि राज्य के 38 ज़िला सहकारी बैंकों में अधिकांश की हालत बेहद खस्ता है। इनकी माली हालात सुधारने के लिए अलग-अलग अवसरों पर सहायता राशि मुहैया कराई गई थी। चूँकि पैसा सीधे सहकारी समितियों को दे दिया गया, लिहाजा ज़्यादा गड़बड़ियाँ करने का इन्हें मौक़ा मिल गया। समितियों के अध्यक्षों ने सोसायटी के विपणन अधिकारियों के साथ मिलकर कर्ज़ वितरण का फ़र्ज़ीवाड़ा कर डाला। बैंक के अमले और सहकारिता विभाग के ऑडिटरों को मिला लेने से गड़बड़ियाँ पकड़ में आने के बजाय बढ़ती चली गईं। 

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पहली बार सार्वजनिक हुई सूचियाँ

केंद्र की सरकार ने 2007 में किसानों का कर्ज़ माफ़ किया था। तब मध्य प्रदेश में इतनी गड़बड़ियाँ सामने नहीं आई थीं। सूत्र बताते हैं कि मध्य प्रदेश की मौजूदा कमलनाथ सरकार ने कर्ज़माफ़ी को लेकर जो प्रक्रिया अपनायी है, उससे घपले सामने आ रहे हैं। कमलनाथ सरकार ने हर किसान के खाते में माफ़ी की राशि डालने का एलान किया है। खाता आधार से लिंक होना आवश्यक किया गया है। इसके अलावा कर्ज़ लेने वाले किसानों की सूचियाँ पहली बार सार्वजनिक की गई हैं। 

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पंचायत स्तर पर कर्ज़दार किसानों की सूचियाँ चस्पा किए जाने से पूरा गोरखधंधा सामने आ रहा है। असल में इसके पहले कभी भी कर्ज़दार किसान की सूची इस तरह से सार्वजनिक हुई ही नहीं है।

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तीन तरह की शिकायतें  

पंचायत स्तर पर सूचियाँ चस्पा किए जाने के बाद तीन तरह की शिकायतें किसानों की ओर से की जा रही हैं। पहली - उन्होंने कर्ज़़ लिया ही नहीं और नाम कर्ज़दारों की सूची में आ गया। दूसरी - कर्ज़ कम लिया और दिखाया ज़्यादा गया है। तीसरी - कर्ज़ लेने वाले की मृत्यु हो जाने के बावजूद नाम कर्ज़दार की सूची में दर्ज़ है।राज्य सरकार ने शिकायतों की बढ़ती संख्याओं के बाद हर ज़िला सहकारी बैंक मुख्यालय पर एक कंट्रोल रूम स्थापित कर दिया है। कलेक्टर इसके इंचार्ज हैं। सहकारिता विभाग के डिप्टी रजिस्ट्रार को भी तैनात किया गया है।

राज्य के सहकारिता मंत्री डॉ. गोविंद सिंह ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘अपने निजी स्वार्थों के लिए तत्कालीन बीजेपी की सरकार और उसमें बैठे लोगों ने देश का मॉडल रहे मध्य प्रदेश के सहकारिता आंदोलन का सत्यानाश कर दिया।’

सहकारिता मंत्री डॉ. गोविंद सिंह के अनुसार, कर्ज़माफ़ी प्रक्रिया के दौरान सामने आ रही गड़बड़ियाँ पहली नजर में तीन हजार करोड़ रुपये के लगभग हैं। उन्होंने कहा अभी तो 13 लाख के लगभग किसानों ने ही आवेदन किए हैं। कुल 50 लाख आवेदन होने हैं। ऐसे में गड़बड़ियों का आँकड़ा काफ़ी बढ़ सकता है। सहकारिता मंत्री ने कहा, ‘गड़बड़ियाँ करने वालों को बख़्शा नहीं जाएगा, भ्रष्टाचार करने वाले हर व्यक्ति पर सरकार सख्त कार्रवाई करेगी।’

ऑडिटर पर भी हो एफ़आईआर

मध्य प्रदेश के सहकारिता आंदोलन के बड़े और पुराने नेता भगवान सिंह यादव ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘हम लगातार बीजेपी के राज की गड़बड़ियों की शिकायतें कर रहे थे, लेकिन तत्कालीन सरकार एक्शन के बजाय शिकायतें दबाती रही।’

अर्जुन सिंह सरकार में मंत्री रहे और मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सहकारिता प्रकोष्ठ के अध्यक्ष यादव यह भी कहते हैं, ‘वक़्त रहते तत्कालीन सरकार क़दम उठाती तो गड़बड़ियां रुक जातीं।’ यादव ने कहा, ‘कमलनाथ सरकार को सहकारिता विभाग के उन ऑडिटर के ख़िलाफ़ भी एफ़आईआर करवानी चाहिए जो वर्षों से ऑडिट करते हुए सोसायटियों को क्लीन चिट देते रहे।’

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