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महिलाओं के प्रति इतनी निष्ठुर क्यों है योगी सरकार? 

महिलाओं के प्रति इतनी निष्ठुर क्यों है योगी सरकार? 

'181 महिला हेल्पलाइन' में काम करने वाली महिलाओं को 1 साल से वेतन नहीं मिला है। ये परेशान हाल औरतें प्रदेश की राजधानी के 'ईको गार्डन'  में सप्ताह भर से धरने पर बैठी हैं।

मुश्किल में फँसी महिलाओं को राहत देने की ख़ातिर 4 साल पहले शुरू की गई '181 महिला हेल्पलाइन' में काम करने वाली महिलाएँ ख़ुद आफ़त में हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने विगत जून से बिना कोई कारण बताए उक्त 'हेल्प लाइन' को तो भंग कर ही दिया है साथ ही इन लाचार महिलाओं को बीते 1 साल से वेतन की फूटी कौड़ी भी नहीं दी है। अपने बच्चों को भूख से बिलखता देख इन मुसीबतज़दा औरतों में एक ने महीना भर पहले रेल से कट कर आत्महत्या कर ली है, बाक़ी आमरण अनशन की तैयारियाँ कर रही हैं। ये परेशान हाल औरतें प्रदेश की राजधानी के 'ईको गार्डन'  में सप्ताह भर से धरने पर बैठी हैं। शासन ने उन्हें धमकाने के लिये चारों तरफ़ हथियारबंद पुलिस का पहरा लगा दिया है।

2016 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन (8 मार्च) तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार ने प्रदेश के 11 ज़िलों में '181 आशा ज्योतिकेन्द्र' के नाम से गृह हिंसा सहित दूसरे प्रकार के अपराधों की शिकार होने वाली आफ़तज़दा औरतों के लिए एक मददगार सेवा की शुरुआत की थी। बताया जाता है कि यह मुख्यमंत्री की पत्नी और सांसद डिंपल यादव का 'ड्रीम प्रोजेक्ट' था। 'महिला कल्याण विभाग' के मातहती वाले इस प्रोजेक्ट को चलाने का ज़िम्मा सरकार ने देश के पावर सेक्टर से जुड़ी निजी कंपनी 'जीवीके पावर @इंफ्रास्ट्रक्चर' के सीएसआर अंग (जीवीके ईएमआरई) को सौंप दी। यही कम्पनी प्रदेश की '102' और '108' (दोनों एम्बुलेंस) हेल्प लाइन का संचालन भी करती है। सरकार की योजना जल्द ही इस प्रोजेक्ट को दूसरे ज़िलों तक पहुँचाने की थी।

अगले ही साल अखिलेश सरकार चली गई और नई योगी सरकार ने अपने गठन के 3 माह के भीतर इस प्रोजेक्ट का नाम बदल कर इसे '181महिला हेल्प लाइन' कर इसे बाक़ी 64 ज़िलों में भी शुरू कर दिया। 16 जून 2017 को मुख्यमंत्री ने इसकी घोषणा करते हुए बड़े गर्व से वक्तव्य दिया ‘हम केवल घोषणा और वायदों तक सीमित नहीं रहेंगे बल्कि उनके लिए काम भी करेंगे।’ इस अवसर पर तत्कालीन 'महिला कल्याण मंत्री' रीता बहुगुणा जोशी ने भी महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते अपराधों पर गहरी चिंता जताई थी और उनसे निबटने का संकल्प पेश किया था। इस 'हेल्प लाइन में कुल 361 महिलाओं को नियुक्त किया गया था। प्रत्येक ज़िले के 'हेल्प लाइन' सेंटर को 1 गाड़ी प्रदान की गयी थी। इन गाड़ियों हेतु भी निजी वेंडरों की सेवाएँ ली गयी थीं।

'हेल्प लाइन' की काउंसलर पायल कटियार बताती हैं-

'181 महिला हेल्प लाइन' ने कुछ ही महीनों में हर ज़िले की महिलाओं के बीच ऐसा विश्वास हासिल कर लिया था कि 'परिवार परामर्श केंद्र' के 90% मामले वहाँ जाने की बजाय 'हेल्प लाइन' के पास ही आने लगे थे। इसी तरह महिला पुलिस थानों के भी ज़्यादातर मामलों में लोग हमारे पास पहुँचते थे।


पायल कटियार, 'हेल्प लाइन' की काउंसलर

संस्था की टीम लीडर पूजा पांडेय का कहना है कि "बेशक हमारी नियुक्ति एक ही छत के नीचे अपराध सम्बन्धी हेल्प उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से की गई थी, लेकिन हमारा उपयोग 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान', 'कन्या सुमंगल' और 'नारी सशक्तिकरण अभियान' के लिए भी किया जा रहा था और हम लोग उसे सहर्ष कर भी रहे थे।" 

यह सब कुछ चल रहा था कि अचानक जून 2019 से इन महिलाओं को वेतन मिलना बंद हो गया। पहले ‘जीवीके’ के स्तर पर आश्वासनों का आदान प्रदान चलता रहा और कुछ महीनों बाद ‘कंपनी’ ने इन कर्मचारियों के समक्ष स्पष्ट कर दिया कि फंड की कमी के चलते अभी सरकार के स्तर से ही भुगतान नहीं हो पा रहा है। मज़ेदार बात यह है कि बिना वेतन दिए ही लॉकडाउन काल में इन महिलाओं को कोरोना संबंधी अतिरिक्त सेवाओं में भी लगाया जाता रहा। 6 जून को इन्हें बताया गया कि '181 महिला हेल्प लाइन' को भंग कर दिया गया है और इन्हें 31 मार्च तक का वेतन दिया जाएगा। 

उधर मुख्यमंत्री ने कहा कि '181' सेवा को '112 ' में मर्ज किया जाता है। 

4 जुलाई को उन्नाव केंद्र में नियुक्त आयुषी सिंह ने कानपुर स्थित श्यामनगर रेलवे क्रॉसिंग पर रेल से कट कर आत्महत्या कर ली। आयुषी की 5 साल की अबोध बेटी है और उसका पति विकलांग है। इसके बाद 'हेल्प लाइन' से जुड़े लखनऊ के वेंडर आशू ने भी आत्महत्या कर ली। आशू ने क़र्ज़ लेकर अपनी गाड़ी 'हेल्पलाइन' में लगा रखी थी और क़र्ज़ का भुगतान उसके लिए नामुमकिन हो गया था।

20 जुलाई को इन महिला कर्मियों ने अपना धरना शुरू कर दिया। 2 दिन के लॉकडाउन के बाद जब ये महिलाएँ 23 जुलाई को फिर धरने पर बैठीं तो पुलिस इन्हें गिरफ्तार करने के नाम पर बसों में भर कर ले गई और ले जाकर चारबाग़ रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया। 24 जुलाई की कैबिनेट मीटिंग के फ़ैसले से अवगत करवाते हुए 'महिला कल्याण मंत्री स्वाति सिंह ने घोषणा की कि एक सप्ताह में ‘हेल्प लाइन’ की महिला कर्मियों के वेतन का भुगतान कर दिया जाएगा। आख़िरकार थक हार कर 17 अगस्त से ये महिलाएँ फिर धरने पर आ बैठीं। इस बार फिर इन्हें आश्वासन दिए जा रहे हैं।

इस समूचे प्रकरण को 2 स्तर पर देखा जाना चाहिए। प्रदेश में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों का ग्राफ़ लगातार बढ़ रहा है। 'नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो' के ताज़ा आँकड़े बताते हैं कि महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में उप्र आज देश में 'टॉप' पर है।

जब से योगी आदित्यनाथ ने यूपी का राजपाट संभाला है स्थितियाँ गंभीर होती चली जा रही हैं। मुख्यमंत्री की गद्दी पर आसीन होते ही उन्होंने स्वीकार किया था कि ‘राज्य में महिलायें बेहद असुरक्षित हैं।’ यद्यपि यहाँ उन्होंने समूची समस्या का राजनीतिकरण करते हुए कहा था ‘ज़्यादा बुरी हालत बाग़पत और बुलंदशहर की है।’ अब लेकिन पूरे प्रदेश का बहुत बुरा हाल है। अकेले जुलाई और अगस्त 2020 में होने वाले बलात्कार और महिला हत्या की वारदातों को गिना जाए तो वह दर्जन भर के आसपास पहुँचती है। ऐसे समय में महिलाओं के लिए कार्यरत ऐसी 'हेल्प लाइन' को बंद कर देना जिसकी सक्रियता पूरे प्रदेश में फैल चुकी थी और जो उनके लिए सचमुच 'हेल्प लाइन' साबित हो रही थी, महिलाओं के प्रति प्रदेश सरकार की संवेदनशीलता को लेकर गंभीर सवाल खड़े करती है।

दूसरा सवाल है प्रदेश में रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने के मुख्यमंत्री के दावों का। जब इस तरह लगी लगाई नौकरियों से लोगों को लात मार कर भगाया जायेगा तो नए रोज़गार के दावों का क्या होगा

प्रदेश भर से बारी-बारी से राजधानी पहुँच कर धरना देने वाली इन महिलाओं को हर दिन एक तरफ़ आश्वासन की घुट्टी पिलाने के लिए 'महिला कल्याण विभाग' के कनिष्ठ अधिकारी पहुँच रहे हैं तो दूसरी तरफ़ हथियारबंद पुलिस की घेराबंदी करके इन्हें आतंकित किया जा रहा है। 'हेल्प लाइन' की टीम लीडर साधना यादव कहती हैं ‘ईको गार्डन के भीतर रूटीन में आने-जाने वाले चाय वेंडरों को भी ये पुलिस वाले रोक देते हैं। हमें डराने की हर संभव कोशिश की जा रही है लेकिन हम डरने वाले नहीं। हमारा अगला क़दम आमरण अनशन है।’

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