बिहार लौटे प्रवासियों में हर चौथा आदमी कोरोना मरीज़
अब तक कम कोरोना मामले वाले बिहार में संक्रमित लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। घर लौट रहे प्रवासी मज़दूरों में से 26 प्रतिशत में संक्रमण पाया जा रहा है। यानी बिहार आये चार प्रवासी मज़दूरों में एक आदमी कोरोना का मरीज़ पाया जा रहा है ।
इंडियन एक्सप्रेस ने एक ख़बर में कहा है कि बिहार लौटे मज़दूरों में से 835 लोगों की कोरोना जाँच की गई, उनमें से 218 में कोरोना की पुष्टि हुई है। यह कुल संख्या का लगभग 26 प्रतिशत है, यानी एक चौथाई से ज़्यादा। यह आँकड़ा राष्ट्रीय औसत से कहीं ज़्यादा है।
बढ़ रहे हैं मामले
बिहार में 18 मई तक 8,337 लोगों की कोरोना जाँच की गई थी, इसमें से 8 प्रतिशत लोगों का टेस्ट प़ॉजिटिव पाया गया था, यानी उनमें कोरोना था। यह राष्ट्रीय राष्ट्रीय औसत 4 प्रतिशत का दूना है।बिहार के साथ दो दिक्क़तें एक साथ हैं। एक तो बाहर से लौट रहे लोगों में कोरोना के वायरस हैं, दूसरे उनके लक्षण बाहर से दिखते नहीं हैं। इसलिए उनका पता ही नहीं चलता है। लेकिन, जाँच करने पर उनमें से कई मामले प़ॉजिटिव पाए जाते हैं। बिहार पहुँचे प्रवासी मज़ूदरों में कोरोना मामलों को लेकर राज्य के स्वास्थ्य कर्मी हैरान हैं।
यह देखा गया है कि जिन राज्यों से ये लोग लौट रहे हैं, वहाँ कोरोना संक्रमण की जो दर है, बिहार लौटे इन लोगों में उससे ऊँची दर का संक्रमण है। इसे हरियाणा और पश्चिम बंगाल से लौटे मज़दूरों की स्थिति पर ध्यान देकर समझा जा सकता है।
बंगाल से लौटे मज़दूर
पश्चिम बंगाल से बिहार लौटे 265 प्रवासी मज़दूरों के नमूनों की जाँच की गई तो उनमें से 33 नमूने पॉज़िटिव निकले, यानी पश्चिम बंगाल में घर लौटे लोगों में से 12 प्रतिशत लोग कोरोना संक्रमित थे। पर स्वयं पश्चिम बंगाल में कोरोना संक्रमण की दर 3 प्रतिशत है, यानी वहाँ जितने लोगों की जाँच हुई, उनमें से सिर्फ 3 प्रतिशत में कोरोना पाया गया।इसी तरह हरियाणा से बिहार लौटे प्रवासी मज़दूरों के 390 नमूनों में से 36 में कोरोना संक्रमण पाया गया। यह 9 प्रतिशत हुआ, जबकि ख़ुद हरियाणा में संक्रमण की दर 1.16 प्रतिशत है।
कारण क्या हैँ
ये आँकड़े चौंकाने वाले तो हैं ही, इस मामले में अहम हैं कि ये बिहार ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर पर भी कोरोना के मामले में नई दृष्टि दे रहे हैं।
यह सवाल उठना लाजिमी है कि पश्चिम बंगाल से अधिक संक्रमण वहाँ से लौटे लोगों में क्यों है, या हरियाणा से लौटे लोगों में संक्रमण कई गुणा अधिक क्यों पाई गई।
इसकी कई वजहें हो सकती हैं। एक तो यह हो सकता है कि इन राज्यों में वैसे लोगों की तादाद अधिक है, जिनमें कोरोना वायरस हैं, पर बाहर से लक्षण दिख नहीं रहे हैं। दूसरी बात यह हो सकती है कि इन राज्यों के स्वास्थ्य विभाग के लोग यह पता लगाएं कि किन इलाक़ों से लौटे लोगों में यह संक्रमण ज़्यादा है, उसके बाद उस इलाक़े पर अलग से अध्ययन करें।
महाराष्ट्र से बिहार लौटे लोगों की कहानी अलग है। महाराष्ट्र से लौटे 1,283 नमूनों में से 141 पॉजिटिव पाए गए, यानी 11 प्रतिशत। लेकिन महाराष्ट्र में संक्रमण की दर 11.7 प्रतिशत है।
इसी तरह के और मामले
गुजरात से बिहार लौटे प्रवासी मज़दूरों के 2,045 नमूनों में 139 में कोरोना वायरस पाया गया। इसी तरह केरल से बिहार लौटे लोगों के 219 नमूनों में से 4 में संक्रमण पाया गया। केरल से बिहार लौटे लोगों में संक्रमण की दर 1.13 प्रतिशत ही है, जो काफी कम है।इसी तरह तमिलनाडु से लौटे लोगों के 57 नमूनों में 2 पॉज़िटिव पाए गए, यानी 3.5 प्रतिशत संक्रमण दर, जबकि उस राज्य में संक्रमण दर 3.43 प्रतिशत है।
इन आँकड़ों से यह साफ़ है कि बिहार में अब जाँच की रफ़्तार बढ़ी है, लौट रहे प्रवासी मज़दूरों की रैंडम जाँच हो रही है। उसके नतीजे अलग-अलग आ रहे हैं।
बता दें कि दो हफ़्ते पहले यानी 4 मई तक बिहार में प्रति दस लाख व्यक्ति 267 कोरोना जाँच हुई थी तो उत्तर प्रदेश में यह संख्या 429 थी। मध्य प्रदेश में प्रति दस लाख 642 लोगों की कोरोना जाँच की गई थी।
प्रति दस लाख लोगों पर हुई जाँच कोरोना की लड़ाई में अहम है, क्योंकि इससे जनसंख्या के हिसाब से जाँच का पता चलता है। इसे इससे समझ सकते हैं कि महाराष्ट्र में सबसे ज़्यादा टेस्ट हुए, लेकिन दिल्ली में प्रति दस लाख व्यक्ति पर जाँच सबसे अधिक हुई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन सरकारों से यह अनुरोध कर रहा है कि इस महामारी को रोकने का सबसे कारगर तरीक़ा अधिक से अधिक लोगों का कोरोना जाँच करना है जिससे कोरोना पॉजिटिव लोगों को अलग-थलग कर इस महामारी को पब्लिक ट्रांसमिशन से रोका जा सके। लेकिन बिहार के सन्दर्भ में यह बात अधिक मायने नहीं रखती क्योंकि 10 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले राज्य में अब तक केवल 5 कोरोना टेस्टिंग केंद्र बनाये गये हैं
बिहार की स्थिति नाज़ुक इसलिए भी है कि वहाँ जाँच केंद्र कम हैं।