1.65 करोड़ लोगों ने दूसरी खुराक ली ही नहीं; तीसरी लहर से कितना डर?
ऐसे में जब कोरोना की तीसरी लहर जल्द ही आने की आशंका जताई गई है, जोखिम वाले समूहों से ही क़रीब 1.65 करोड़ लोगों ने समय पर दूसरी खुराक ली ही नहीं। समय पर से मतलब है लोगों को जितने दिनों के अंतराल में दूसरी वैक्सीन लगवानी थी उसे वे नहीं लगवा पाए। इसमें 45 साल से ऊपर के लोग, स्वास्थ्य कर्मी और फ्रंटलाइन वर्कर्स शामिल हैं।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिजास्टर मैनेजमेंट यानी एनआईडीएम की गठित एक कमेटी ने दो दिन पहले ही चेताया है कि तीसरी लहर बस शुरू ही होने वाली है और यह अक्टूबर में अपने शिखर पर होगी। यह इस आधार पर कहा गया है कि इस महीने की शुरुआत में केंद्र सरकार ने कहा था कि 'R' वैल्यू 1.0 के ख़तरे के निशान से ऊपर पहुँच गया है। पिछली बार यह इस स्तर से ऊपर था जब यह मार्च में 1.32 था, और वह दूसरी लहर से पहले था।
'R' वैल्यू 1.0 होने का मतलब है कि औसतन हर 10 कोरोना संक्रमित व्यक्ति 10 अन्य लोगों को संक्रमित करेंगे। इसी के मद्देनज़र कहा जा रहा है कि चूँकि भारत में यह 'R' वैल्यू के 1.0 हो गया है इसलिए तीसरी लहर शुरू होने को ही है।
इस ख़तरे के मद्देनज़र क़रीब 1.6 करोड़ लोग जोखिम में होंगे। इसे आसानी से ऐसे समझ सकते हैं। भारत में कोविशील्ड की दो खुराक 12-16 हफ़्तों के बीच दी जानी चाहिए। इस पर विवाद भी हुआ था। कोविशील्ड वैक्सीन की जो खुराकें शुरुआत में 4 हफ़्ते के अंतराल में लगाई जा रही थीं उसको 12-16 हफ़्ते बढ़ा दिया गया था। तब देश में कोरोना टीके की ज़बर्दस्त माँग थी और वैक्सीन की कमी के कारण कई टीकाकरण केंद्रों के बंद होने की ख़बरें आ रही थीं। तब केंद्र सरकार ने कहा था कि उभरते वैज्ञानिक साक्ष्यों के मद्देनज़र अंतराल को बढ़ाया गया है। कोविशील्ड के अलावा कोवैक्सीन की दो खुराकों के बीच अंतराल 4-6 हफ़्ते का है।
कोविशील्ड की खुराकों के अधिकतम 16 हफ़्ते के अंतराल से ही तुलना करें तो 2 मई तक 12.8 करोड़ ऐसे लोग हैं जिन्होंने एक टीका लगवाया था। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार अब 23 अगस्त को 11.15 करोड़ लोग ही दोनों टीके लगवा पाए।
इसका मतलब है कि कम से कम 165 करोड़ लोग इन 16 हफ़्तों के दायरे में टीके नहीं लगवा पाए। इसमें सबसे ज़्यादा 60 साल से ऊपर के बुजुर्ग हैं और ऐसे लोगों की संख्या कम से कम 1 करोड़ 6 लाख है।
संपूर्ण रूप से टीकाकरण की बात करें तो भी भारत में टीकाकरण काफ़ी धीमा चल रहा है। सरकार ने ही ख़ुद लक्ष्य तय किया है कि वह इस साल दिसंबर तक सभी वयस्कों को टीका लगवा देगी, लेकिन फ़िलहाल यह मुश्किल लगता है। ऐसा इसलिए कि अब तक देश में वयस्क आबादी की क़रीब 14 फ़ीसदी आबादी को दोनों टीके लगाए जा चुके हैं जबकि क़रीब 48 फ़ीसदी आबादी को एक-एक टीके लगाए गए हैं।
मौजूदा समय में औसत रूप से 51 लाख लोगों को हर रोज़ टीका लगाया जा रहा है। इस गति से दिसंबर के आख़िर तक 34 फ़ीसदी आबादी को दोनों टीके लगाए जा सकते हैं। हर रोज़ एक करोड़ से ज़्यादा टीके लगाए जाने पर लक्ष्य को प्राप्त किया जाना संभव हो सकता है।
अपर्याप्त लोगों को टीके लगाए जाने, संक्रमण से ठीक हुए लोगों व वैक्सीन लगवाए लोगों के भी संक्रमित होने की वजह से भी तीसरी लहर की आशंका है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिजास्टर मैनेजमेंट यानी एनआईडीएम की गठित एक कमेटी ने चेताया है कि तीसरी लहर बच्चों के लिए भी उतनी ही ख़तरनाक होगी जितनी व्यस्कों के लिए। गृह मंत्रालय के निर्देश पर गठित समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि 'डॉक्टर, कर्मचारी, वेंटिलेटर, एम्बुलेंस, उपकरण आदि की बाल चिकित्सा सुविधाएँ कहीं भी बच्चों की बड़ी संख्या की ज़रूरत के अनुसार आसपास भी नहीं हैं।'
विशेषज्ञों ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बाल रोग विशेषज्ञों की 82% कमी और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 63% खाली पदों के बारे में भी चिंता व्यक्त की है। यानी ख़तरा बच्चे, वयस्क और बुजुर्ग, सभी के लिए है!